लाईब्रेरियन होना और बनना इतना आसान है क्या? : पुखराज यादव
विषय चयन करते वक्त न जाने ये ख़्याल कैसे आया मगर विषय का चयन गम्भीर करने वाला है, विषय है- "लाईब्रेरियन: होना और बनना"। वस्तुतः तो लाईब्रेरियन या पुस्तकालयाध्यक्ष की किसे कहे? संभव है जो पुस्तकालय का प्रमुख हो या संरक्षक हो, या फिर पुस्तकों के प्रति अभिष्ठ प्रतिज्ञाबद्ध हो की ज्ञान के प्रत्येक बूंद को संजोकर लोगों में अमृत स्वरूप वितरण करने का प्रयत्न करता हो। पुस्तकालय यानी पुस्तकों का स्थान या मंदिर जहाँ विद्या ही धन, विद्या ही कर्म, विद्या ही व्यय और विद्या ही परिश्रम है। पुस्तकों में निहित ज्ञान और ज्ञान-पिपासु को ज्ञान सागर तक ले जाने का पथप्रदर्शक होता है एक लाईब्रेरियन(पुस्तकालयाध्यक्ष)। 

 

       विषय यह नहीं है की लाईब्रेरियन क्या होता है अपितु विषय है लाईब्रेरियन कौन है? वर्तमान दौर में लाईब्रेरियन के पद को एक व्यवसायिक रोजगार के रूप देखें तो यह दो प्रकार हैं। पहला वह पदस्थापना जो शासकीय संस्थानों में नियुक्त होते हैं। दूसरा वह जिनकी पदस्थापना निजी संस्थानों/प्रक्रमों में होते है। दोनो ही स्वरूप में ऐसे प्रोफेशनल्स की नियुक्ता, नियुक्ति करता है जो निपूर्ण हो, कौशलपूर्ण हो। एक निर्धारित योग्यता होती है जैसे बी.लिब./एम.लिब. और इन पाठ्यक्रमों का संचालन विश्वविद्यालयों के अधिन सीमित सीटों पर होता है। एक औसतन अन्य स्नाताक पाठ्यक्रम की अपेक्षा ३०-४० सीट ही होती है। लेकिन एक अपेक्षाकृत संभावना भी सामने रखने का प्रयास करता हूं, जैसे किसी डिपार्टमेंट की भर्तियों का विज्ञप्ति आया या आने की संभावना हुई या इन फ्यूचर भर्तियां हो सकती है। उस समय कुछ शिक्षण संस्थान नायक स्वरूप उभरते हैं और ऐसे पाठ्यक्रमों का संचालन दूरस्थ शिक्षा पद्धति में या न्यूनतम साप्ताहिकी एटेंडेंश के भरोषे ऐसे प्रोफेशनल्स पाठ्यक्रम चलाए जाते है।

 

        बेरोजगार!!! बेरोजगारी का मारा एक आश लगाए सोच लेता है की हां मैं डिस्टेंश मोड़/लो एटेंडेंश मॉडल में डिग्री लेकर रख लिए लेता हूं जाने कब वैकेंसी आ जाये। लगभग एक चक्रीय क्रम सा प्रतित होता है मान्यवर, जब सोचता हूं की जो जिस पाठ्यक्रम की आधारशिला ही प्रेक्टिश/प्रायोगिक हो उसे आप १० दिन के उपस्थिति से क्या साबित कर पाएंगे? क्या प्रोफेशनल्स सिर्फ नाम के नहीं रह जायेंगे।

 

खैर प्रोफेशनल्स सिर्फ नाम के हो या ना हो मगर सवाल एक और है निजी संस्थानों में भई मांग तो है लाईब्रेरियन की, मगर केवल स्पेंक्शन के दौरान या फिर एक पद की अनिवार्यता रख दी है युजीसी और शिक्षा बोर्ड ने, तो लाईब्रेरियन रख लिया जाता है या फिर स्टॉफ मे से किसी को बना दिया जाता है। गज़ब है ना, चलो बात थोड़ी शासकीय संस्थानों की करतें तो समझ में आता है की लाईब्रेरियन के पदों की संख्या तो बहुत है,क्योकि कई ऐसे भी शिक्षण संस्था/स्कुल्स/ कॉलेज/ में लाईब्रेरियन की रिक्तियाँ सिर्फ ठंड़ में भर्ती के विज्ञापनों को जला अलाव ताप रहीं है और पुस्तकालय के गठन के लिए पारित हुई पुस्तकों की खरीदी तो फाईलों के पन्नों में सीमट कर आजादी के इंतजार में है। बहरहाल मेरा विषय आज वह नहीं है।

 

विषय है लाईब्रेरियन क्या है? तथाकथित मैनेज्मेंट कहलाने वालों के नजरिये से देखें तो लाईब्रेरी और लाईब्रेरियन दोनो ही व्यय तुल्य ही है। जिसें कभी कलर्क, कभी व्यवस्थापक, कभी फाईल और लिफाफा लिफ्टर तक भी इच्छाधारी स्वरूपी मान लिया जाता है। पर.....

 

 

वास्तव में एक लाईब्रेरियन ज्ञान सागर का प्रबंधनकर्ता और लाईब्रेरी या पुस्तकालय का वह सशक्त अधिकारी होता है जो अपने पाठकों के इच्छित विषय का मार्गदर्शक होता है। साथ ही उन पढ़े लिखें अनपढ़ों को यह समझना आवश्यक है कि पुस्तकालय शैक्षणिक संस्थानों का बैक-बोन होता है। और लाईब्रेरियन उस बैक-बोन की संयोजिका तुल्य होता है।

 

                                                                                                         लेखक - पुखराज यादव 'प्राज'- ग्रंथपाल

 

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